महाराणा प्रताप जी जन्म जयंती 9 मई को।:
महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत 1597 तदनुसार 9 मई 1540 को मेवाड के सिसोदिया राजपूत राजवंश मे हुआ था। उनका नाम इतिहास में वीरता, शौर्य, त्याग, पराक्रम और दृढ प्रण के लिये अमर है।उनका जन्म वर्तमान राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जयवन्ताबाई के घर हुआ था। लेखक जेम्स टॉड के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म मेवाड़ के कुम्भलगढ में हुआ था। इतिहासकार विजय नाहर के अनुसार राजपूत समाज की परंपरा व महाराणा प्रताप की जन्म कुण्डली व कालगणना के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म पाली के राजमहलों में हुआ।उन्होंने मुगलों के खिलाफ कई लड़ाई लड़ी, लेकिन उनमें से सबसे कठिन हल्दीघाटी की लड़ाई थी, जो 18 जून, 1576 को हुई थी। उनका नाम बहादुरी का पर्याय है और प्रताप की जन्मदिन को मनाने के लिए एक दिन के रूप में चिह्नित किया जाता है। उनकी वीरता और साहस ने उनके रास्ते में आने वाली किसी भी बाधा को टाल दिया ।भारत के महान योद्धा महाराणा प्रताप ऐसे शूरवीर थे, जिन्हें दुश्मन भी सलाम करते थे। वह मेवाड़ में सिसौदिया राजपूत राजवंश के राजा थे। उन्होंने आखिरी सांस तक मेवाड़ की रक्षा की। उनका पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसौदिया था। उनका जन्म मेवाड़ में हुआ। बचपन में उन्हें कीका नाम से पुकारा जाता था। महाराणा प्रताप को भारत का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी भी कहा जाता है। उनका कद 7 फीट 5 इंच था। उनके भाले का वजन 80 किलो था। उनकी दो तलवारें जिनका वजन 208 किलोग्राम और उनका कवच 72 किलोग्राम का था। युद्ध के समय महाराणा प्रताप दो तलवार रखते थे। यदि उनके दुश्मन के पास तलवार नहीं होती थी तो वह उसे अपनी एक तलवार देते थे जिससे युद्ध बराबरी का हो। हल्दीघाटी युद्ध में मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया। हकीम खां सूरी, हल्दी घाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले एकमात्र मुस्लिम सरदार थे। इस युद्ध को 80 हजार की मुगल सेना के खिलाफ मात्र 22 हजार की सेना के साथ महाराणा प्रताप ने बहुत बहादुरी से लड़ा। इस युद्ध में न अकबर की जीत हुई और न ही महाराणा प्रताप की। हल्दी घाटी युद्ध के 300 साल बाद भी उस जगह से तलवारें पाई गईं। महाराणा प्रताप 20 वर्ष तक मेवाड़ के जंगल में घूमते रहे। मायरा की गुफा में उन्होंने कई दिनों तक घास की रोटियां खाकर वक्त गुजारा। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु पर अकबर भी रो पड़ा था। मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85 प्रतिशत मेवाड़ फिर से जीत लिया था। उनका घोड़ा चेतक वफादारी के लिए जाना जाता है। महाराणा प्रताप के पास चेतक के साथ प्रिय हाथी रामप्रसाद भी था। महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लोहार जाति के हजारों लोगों ने भी घर छोड़ा और दिन-रात उनकी फौज के लिए तलवारें बनाईं।भारतीय इतिहास में मेवाड़ोद्धारक दानवीर भामाशाह का नाम बड़े ही गौरव के साथ लिया जाता है। भामाशाह स्वामिभक्त एवं दानवीर होने के साथ—साथ जैनधर्म के परम श्रद्धालु श्रावक थे। हल्दी घाटी के युद्ध में पराजित महाराणा प्रताप के लिए उन्होंने अपनी निजी सम्पत्ति में इतना धन दान दिया था कि जिससे २५००० सैनिकों का बारह वर्ष तक निर्वाह हो सकता था। प्राप्त सहयोग से महाराणा प्रताप में नया उत्साह उत्पन्न हुआ और उनने पुन: सैन्य शक्ति संगठित कर मुगल शासकों को पराजित कर फिर से मेवाड़ का राज्य प्राप्त किया। राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले अद्भुत शौर्य और अदम्य साहस के प्रतीक वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती पर उन्हें मेरा सादर नमन|
✍🏻नीति सौरभ जैन अंबाह
05/06/2022 04:17 AM