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एएमयू पूर्व उपाध्यक्ष ने आरडीए, अमूटा, जेडीए जैसे तदर्थ संघ पर दागे सवाल: एएमयू का लोकतंत्र खतरे में बताया।
अलीगढ़। एक निर्वाचित संघ के बजाय अमुटा, आरडीए और जेडीए जैसे तदर्थ संघ का गठन क्यों किया गया? जब मौलाना आजाद नेशनल उर्दू विश्विद्यालय जैसे अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों में निर्वाचित यूनियनों का गठन हो सकता है, जब हर राज्य में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं? तो एएमयू में चुनाव क्यों नहीं? ऐसे चाटुकार संघों को बनाने का क्या मतलब है? छात्रों के बजाय विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छात्र प्रतिनिधि को चुनना व्यर्थ है।
एएमयू के कुलपति पक्षपाती हैं, अपने लोगों को तदर्थ संघ में सिर्फ इसलिए डाल रहे हैं क्योंकि तदर्थ संघ विश्वविद्यालय प्रशासन के अनुसार काम करेगा और उनके नापाक कामों को उजागर नहीं करेगा। यह अनुच्छेद 19(1)(c) का घोर उल्लंघन है, जो सभी को "संगम या संघ या सहकारी सोसाइटी बनाने" के अधिकार की गारंटी देता है। यह पहले ऐसे कुलपति हैं जिसने लगातार 3 साल तक विश्वविद्यालय को बंद रखा है। इतना समय होने के बाद भी, उन्होंने एएमयू कार्यकारी परिषद या छात्र संगठनों के लिए चुनाव नहीं किया, न ही उन्होंने एक नए कुलपति के चुनाव की प्रक्रिया शुरू की, इस तथ्य के बावजूद कि कई अन्य विश्वविद्यालयों ने पिछले कुछ महीने में नए कुलपति चुने जा चुके हैं। उन्होंने सरकार की चापलूसों में अपना समय बर्बाद किया है और इस विश्वविद्यालय के लिए कोई काम नहीं किया है। ये सब सिर्फ इसलिए किया जा रहा है ताकि मुस्लिम संस्थानों, विश्विद्यालों और उसके नेतृत्व को नष्ट कर दिया जाए।
अगर ऐसा ही चलता रहा तो निश्चित तौर पर लोकतंत्र का अंत हो जाएगा और राजशाही उसकी जगह ले लेगी। सरकार को इसकी जांच करनी चाहिए। साथ ही जिस तरह से सत्ता का दुरुपयोग किया जा रहा है उसे भी रोका जाना चाहिए।
04/14/2022 10:53 AM